10 घंटे की कड़ी मेहनत के बाद रोज 50 रूपए कमाने वाले कृष्ण कुमार को इस बात का अंदाजा भी न था, कि उनका 4 हजार रूपए का पुराना टाइप राईटर मित्र पुलिस की एक लात भी न झेल पायेगा। लेकिन उन्होंने दुबारा कोशिश की और गरीबी की चादर ओढ़ते हुए कहा साहब माफ़ कर दो, लेकिन साहब के कंधो पर लगे सितारों की चमक इतनी तेज थी कि उस गरीब की आँखों में आये आंसुओं की चमक फीकी पड़ गयी।
साहब ने अपने मजबूत हाथ एक झटके से टाइप राईटर को उठाकर फेंक दिया। दूर गिरा टाइप राईटर किसी गरीब के सपनों की तरह टूट कर बिखर गया। 65 वर्षीय कृष्ण कुमार अपने सपने को यूँ बिखरता देख उसे समेटने में लग गए, लेकिन मानो वहां टूटा पड़ा हर टुकड़ा चीख चीख कर कह रहा था कि अब हम नही जुड़ेंगे।
जब उनसे पूछा कि अब क्या करेंगे तो उन्होंने कहा कि पिछले 35 साल से यही काम कर रहा हूँ और बहुत कुछ अपनी आँखों के सामने बदलते देखा, लेकिन अब शायद खुद को बदलने की जरुरत है, अब हिंदी के तरह मेरे टाइप राइटर की भी देश को जरुरत नही है। ये कहते हुए वह अपने टूटे टाइप राईटर को निहारने लगे।
अपने टाइपराइटर को दोबार ठीक करने की नाकाम कोशिश करते कृष्ण कुमार।
जब उनसे पूछा कि अब क्या करेंगे तो उन्होंने कहा कि पिछले 35 साल से यही काम कर रहा हूँ और बहुत कुछ अपनी आँखों के सामने बदलते देखा, लेकिन अब शायद खुद को बदलने की जरुरत है, अब हिंदी के तरह मेरे टाइप राइटर की भी देश को जरुरत नही है। ये कहते हुए वह अपने टूटे टाइप राईटर को निहारने लगे।
टाइपराइटर को फेंका।
लखनऊ. राजधानी के जीपीओ चौराहे से महज कुछ दूरी पर शनिवार को पुलिस का अमानवीय चेहरा सामने दिखा। एक तरफ जहां सीएम विधानसभा में अफसरों को गरीबों-मजलूमों की मदद करने की हिदायत दे रहे थे, वहीं उनसे कुछ दूरी पर सचिवालय चौकी प्रभारी प्रदीप कुमार गरीबों पर जुल्म ढा रहे थे। गरीब हाथ जोड़कर खड़ा था और दरोगा उनकी रोजी-रोटी को खत्म कर रहा था। इस दौरान दरोगा ने मीडियाकर्मियों से भी कहा, 'मेरा नाम बड़े-बड़े अक्षरों में लिखना, जिससे एसएसपी भी मेरे बारे में जान सकें।' हालांकि, dainikbhaskar.com पर खबर फ्लैश होते ही आरोपी दारोगा प्रदीप कुमार को तुरंत स्स्पेंड कर दिया गया।
शनिवार को विधानसभा में प्रदेश भर के अफसरों की एक बैठक बुलाई गई थी। सीएम अखिलेश यादव इसमें अचानक से पहुंच गए थे। इस दौरान सीएम ने अफसरों को नसीहत दी कि वे गरीबों और मजलूमों का पूरा ध्यान रखें। इसी बीच जीपीओ चौराहे पर चौकी प्रभारी प्रदीप कुमार लोगों को वर्दी की हनक दिखा रहे थे। वह जीपीओ चौराहे के किनारे दुकान चलाने वाले गरीबों के सामान को अपने बूट से तोड़ रहे थे और उन्हें भगा रहे थे। बताते चलें कि जीपीओ के किनारे लगे दुकानों को सिर्फ मायावती की फ्लीट जाते समय ही हटाया जाता था। इस सरकार में यह पहला मौका है जब दरोगा ने उन्हें वहां से भगाया।
फोटोजर्नलिस्ट को को धमकी देता दरोगा।
दरोगा ने तोड़ा टाइपराइटर, गिराया दूध
सचिवालय चौकी प्रभारी प्रदीप कुमार अपनी दबंगई के लिए जाने जाते हैं। गरीबों में उनके नाम की दहशत है। शनिवार को उन्होंने बूट मारकर वहां मौजूद दुकानें हटाई, इसके बाद हाथ से उठाकर टाइपराइटर भी फेंक दिया। यही नहीं, सड़क किनारे चाय लगाने वालों के बर्तन फेंक दिया, जिससे उसमें रखा दूध वहां फैल गया। इससे गरीबों को हजारों का नुकसान हुआ।
चाय की दुकान को किया तहस-नहस।
जीने का जरिया ख़त्म कर दिया
जीपीओ चौराहे पर पिछले 35 सालों से टाइपराइटर लेकर बैठने वाले कृष्ण कुमार का रो-रो कर बुरा हाल है। वह कहते हैं कि बड़ी मुश्किल से उधार लेकर तीन साल पहले 5 हजार का टाइपराइटर खरीदा था। इसे दरोगा ने फेंक कर तोड़ दिया। अब यह टाइपराइटर बन भी नहीं पाएगा। उन्होंने कहा, 'मैं हाथ जोड़ता रहा लेकिन दरोगा का दिल नहीं पसीजा और उन्होंने मेरे परिवार के जीने का जरिया ही ख़त्म कर दिया। बड़ी मुश्किल से रुपए कमा पाता हूं, अब वह भी मयस्सर नहीं हो पाएगा।'
जीपीओ चौराहे पर पिछले 35 सालों से टाइपराइटर लेकर बैठने वाले कृष्ण कुमार का रो-रो कर बुरा हाल है। वह कहते हैं कि बड़ी मुश्किल से उधार लेकर तीन साल पहले 5 हजार का टाइपराइटर खरीदा था। इसे दरोगा ने फेंक कर तोड़ दिया। अब यह टाइपराइटर बन भी नहीं पाएगा। उन्होंने कहा, 'मैं हाथ जोड़ता रहा लेकिन दरोगा का दिल नहीं पसीजा और उन्होंने मेरे परिवार के जीने का जरिया ही ख़त्म कर दिया। बड़ी मुश्किल से रुपए कमा पाता हूं, अब वह भी मयस्सर नहीं हो पाएगा।'
अपने टाइपराइटर को देखते कृष्ण कुमार।
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